Saturday, May 22, 2010

A Dedication

हम दीवानों की क्या हस्ती

हम दीवानों की क्या हस्ती,
आज यहाँ कल वहाँ चले
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते जहाँ चले

आए बनकर उल्लास कभी,
आँसू बनकर बह चले अभी
सब कहते ही रह गए,
अरे तुम कैसे आए, कहाँ चले
किस ओर चले? मत ये पूछो,
बस चलना है इसलिए चले

जग से उसका कुछ लिए चले,
जग को अपना कुछ दिए चले
दो बात कहीं, दो बात सुनी,
कुछ हँसे और फिर कुछ रोए
छक कर सुख दुःख के घूँटों को,
हम एक भाव से पिए चले

हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वछन्द लुटाकर प्यार चले
हम एक निशानी उर पर,
ले असफलता का भार चले

हम मान रहित, अपमान रहित,
जी भर कर खुलकर खेल चुके
हम हँसते हँसते आज यहाँ,
प्राणों की बाजी हार चले

अब अपना और पराया क्या,
आबाद रहें रुकने वाले
हम स्वयं बंधे थे, और स्वयं,
हम अपने बन्धन तोड़ चले

- भगवतीचरण वर्मा  

The above poem pretty much summarizes the way I wish I could live my life... trying each moment... keep walking

1 comment:

Pratima said...

Beautiful lines about a free spirit soul.I like this poem.

Thanks Nitin.